मेरी ये एक छोटी सी चेष्ठा है हिंदी के महान कवियों और लेखकों की रचनओं को श्रधांजली देने की और उसे अच्छी तरह समझने की। यह धरोहर मुझे मेरी माँ से मिली है जो मैं अपनी बेटी को देना चाहती हूँ।
कुछ वर्ष पहले मैंने अपनी बेटी से पूछा की हमरे राष्टकवि कौन हैं ? उसके उत्तर ने मुझे झगझोर के रख दिया जब उसने कहा - रबिन्द्रनाथ टगोर. उस समय मुझे प्रतित हुआ की इस पीढ़ी को हमारे हिंदी साहित्य के बारे में कितना सीमित ज्ञान है। तब से मैं सोच रही थी कुछ करने का ताकि इस पीढ़ी को भी हमारे हिंदी संस्कृति के कुछ अनमोल कृतियों से अवगत करा दू .
हिंदी साहित्य मेरे अनुसार एक महान सागर है जिसकी चंद बूंदे भी अगर हम पर प़र जाये तो जीवन की बहुत सारी गुथिया सुलझ सकती हैं . मेरे हिंदी साहित्य की ओर लगाव के लिए राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर का बहुत महत्व है। उनकी रचनओं में मैं नित नए अर्थ देखती हूँ। हर शब्द में एक शक्ति सा प्रतीत होता है। पहली रचना मैंने अपने सप्तम वर्ग में पढ़ी थी। यह उनकी संरचना "कुरुषेत्र" से लियी गयी थी।
" छमा शोभती उस भुजंग को जिस के पास गरल हो, उसको क्या जो दंत हीन, विष रहित विनीत सरल हो।......."
इस छन्द ने मुझे हिंदी लेख़ की ओर आकर्षित किया। तब से ये मेरे साथ हैं और जीवन के बहुत सारे पड़ावों प़र मेरा सहारा बने हैं। भावनाओं को जितने अच्छे से मैं इस भाषा में प्रस्तुत कर सकती हूँ वह शायद किसी और में नहीं। यह मेरी मातृभाषा है ना।
माँ
कुछ वर्ष पहले मैंने अपनी बेटी से पूछा की हमरे राष्टकवि कौन हैं ? उसके उत्तर ने मुझे झगझोर के रख दिया जब उसने कहा - रबिन्द्रनाथ टगोर. उस समय मुझे प्रतित हुआ की इस पीढ़ी को हमारे हिंदी साहित्य के बारे में कितना सीमित ज्ञान है। तब से मैं सोच रही थी कुछ करने का ताकि इस पीढ़ी को भी हमारे हिंदी संस्कृति के कुछ अनमोल कृतियों से अवगत करा दू .
हिंदी साहित्य मेरे अनुसार एक महान सागर है जिसकी चंद बूंदे भी अगर हम पर प़र जाये तो जीवन की बहुत सारी गुथिया सुलझ सकती हैं . मेरे हिंदी साहित्य की ओर लगाव के लिए राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर का बहुत महत्व है। उनकी रचनओं में मैं नित नए अर्थ देखती हूँ। हर शब्द में एक शक्ति सा प्रतीत होता है। पहली रचना मैंने अपने सप्तम वर्ग में पढ़ी थी। यह उनकी संरचना "कुरुषेत्र" से लियी गयी थी।
" छमा शोभती उस भुजंग को जिस के पास गरल हो, उसको क्या जो दंत हीन, विष रहित विनीत सरल हो।......."
इस छन्द ने मुझे हिंदी लेख़ की ओर आकर्षित किया। तब से ये मेरे साथ हैं और जीवन के बहुत सारे पड़ावों प़र मेरा सहारा बने हैं। भावनाओं को जितने अच्छे से मैं इस भाषा में प्रस्तुत कर सकती हूँ वह शायद किसी और में नहीं। यह मेरी मातृभाषा है ना।
माँ
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