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नर हो न निराश करो मन को


नर हो न निराश करो मन को
- मैथिलीशरण गुप्त
नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।
संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।

टिप्पणियाँ

  1. So true,sometimes we just tend to forget or rather dont make the effort to remember some of our basics....much needed,thank you.

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  2. This was recited by mom to me when I was in Patna...and I felt that I had to share it on my blog...The first two lines sum up the entire meaning for our existence...I am happy that you appreciated....

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  3. These immortal lines always lift you up and give you hope where (perhaps)none exists. As Sweta suggested, I too read it in the schools, a long time back. But, today I found new meanings and wisdom and for that I'm grateful. Thanks Bahini!

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  4. Sweta and Mumnna Bhaiya I really appreciate your kind words. It indeed takes us back to our school days. I had read once that most of the problems in our adult life could be solved if only we remembered what we were taught in school.

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