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मेरी ज़मीन और मेरा आसमान...

"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता.... ......तेरे जहाँ में ऐसा नहीं कि प्यार न हो जहाँ उम्मीद हो इसकी, वहाँ नहीं मिलता"                                                               - (निदा फ़ज़ली के ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ ) किसी भी इंसान को जीने के लिए किन चीज़ों की ज़रुरत हो सकती है? साँस, ज़मीन और आसमां। पहला तो ख़ुदा पैदा करते के साथ दे देता है पर बाकी दो को हासिल करने में सारी उम्र निकल जाती है। कमर टूट जाती है पर दोनों साथ कभी नहीं मिलते। हर पल ज़िन्दगी ये अहसास दिलाती है की कितना मुश्किल है मिलना "अपनी ज़मीन और अपने आसमान" का। एक साथ।           जब तक माँ-बाप की ड्योढ़ी पार नहीं करते तब तक लगता है सब अपना है। उनका असमान हमारा होता है, उनकी ज़मीन हमारी होती है। फ़िर वो वक़्त आता है जब हम एक महफू...

Is a woman human....

मुंशी प्रेमचंद की मनोरमा और  निर्मला , भगवतीचरण वर्मा की चित्रलेखा , आचार्य चतुर्सेन की वैशाली की नगर वधु , गोली  , शरतचंद्र की देवदास और  परिणीता, तुलसीदास   की सीता और महर्षि व्यास की द्रौपदी, कुंती और गांधारी  और ऐसी ही अन्य कई विख्यात रचनओं में स्त्री को ऐसे रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसकी तुलना आम जीवन से नहीं की जा सकती। स्त्री के गुणों-अवगुणों को इस तरह से दर्शाया गया की अगर कोई सामान्य नारी उन पात्रों से अपनी तुलना करे तो उसे उसकी झलक अपने जीवन में कहीं नज़र नहीं आएगी। नारी के रूप को और भावनाओं के दो छोरों पर दिखाया गया है। ज्ञान, दया और त्याग अगर एक छोर  है तो ईर्ष्या और प्रतिशोध दूसरा छोर है। क्या स्त्री इन दोनों के बीच में नहीं हो सकती ?   हमारी ज्यादातर हिंदी कृतियों में स्त्री को देवतुल्य चित्रित किया गया है और शायद इसी कारणवश एक आम स्त्री के लिए उसपर खड़ा उतरना आसान नहीं है। हमारे समाज में पुरुष मनुष्य है परन्तु स्त्री देवी है। ऐसी देवी जो समाज के हर ज़हर को पी सक...