जीवन में एक सितारा था माना वह बेहद प्यारा था वह डूब गया तो डूब गया अम्बर के आंगन को देखो कितने इसके तारे टूटे कितने इसके प्यारे छूटे जो छूट गए फिर कहाँ मिले पर बोलो टूटे तारों पर कब अम्बर शोक मनाता है जो बीत गई सो बात गई। जीवन में वह था एक कुसुम थे उसपर नित्य निछावर तुम वह सूख गया तो सूख गया मधुवन की छाती को देखो सूखी कितनी इसकी कलियाँ मुरझाई कितनी वल्लरियाँ जो मुरझाई फिर कहाँ खिली पर बोलो सूखे फूलों पर कब मधुब न शोर मचाता है जो बीत गई सो बात गई। - श्री हरिवंश राय 'बच्चन' की कविता "जो बीत गई सो बात गई" के दो छंद बहुत दिनों बाद ये कविता मेरे हाथ लगी। स्कूल में पढ़ा था। आज फ़िर दोबारा इसका मिलना अच्छा लग रहा है। वह भी ऐसे समय में जब इसकी आवश्यकता है। साहित्य मुझे इस लिए प्रेरित करता है क्योंकि इसमें मानव जीवन के हर एक उतार-चढ़ाव, रंग, लय और भावना का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है। भावनायें शब्दों के अर्थ के परे होती हैं। भाषा उसे बांध नहीं सकती। साहित्य के अनेक रूप हैं। कहानियों या नाटक...
Hindi works and my interpretations on their relevance.....