दोस्ती एक ऐसी चीज़ है जो
हर किसी की किस्मत में नहीं होती। अच्छे दोस्त और सच्चे दोस्त में बहुत फ़र्क होता है। किसी भी राह पर निकल जाईए, कोई न कोई साथ के लिए मिल ही जायेगा। अकसर ऐसे साथ को हम दोस्ती समझ बैठते हैं। जो शायद ग़लत भी नहीं है क्योंकि ये एक ऐसा नायाब रिश्ता है जो ढूँढने पर भी नहीं मिलता। दिल हमेशा से ऐसे पल ढूंढता रहता है जहाँ उसे सुकून और फुर्सत का अहसास हो। सच्चा दोस्त वो नहीं जो सिर्फ़ मुसीबत के वक़्त काम आए। सच्ची दोस्त तुम होगी जब तुम बिना किसी उम्मीद के अपने अपने दोस्त को संभाल सकोगी। खून के रिश्ते हम लेकर पैदा होते हैं। पर दिल का रिश्ता जैसे बड़े होते हैं वैसे जुड़ता जाता है। ये भी एक तरीका है कुदरत का हमें अहसास दिलाने का की हम अगर ख़ुद से भी रिश्ते जोड़ें तो वो ग़लत हो सकते हैं। हमेशा किस्मत और दूसरों को कोसना हमारी फ़ितरत नहीं बन जानी चाहिए।
मैं अकसर ये सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ की इतने सारे लोगो से हम मिलते हैं पर जान पहचान कुछ से ही होती है और दोस्ती तो महज़ गिन चुनकर लोगों से। कुछ तो इसमें कुदरत का करिश्मा है। जैसे निजी जीवन में हर रिश्ता आपको चैन नहीं दे सकता वैसे हीं दोस्ती में हर दोस्त आपको समझ नहीं सकता, ना ही ख़ुशी दे सकता है। जिस दोस्ती में सच और थोड़े से उजाले के लिए जगह नहीं हो, वो दोस्ती नहीं बल्कि एक समझौता होता है जहाँ आप रिश्ते से सिर्फ लेने आते हैं, देने नहीं।
मैंने अकसर किताबों में पढ़ा है, बहुत बार अपने जीवन को एक नया मोड़ देने के लिए बहुत से पुराने रिशतों को तोड़ना पड़ता है या एक नया रास्ता ईख्तायर करना पड़ता है। जिस चीज़ को हम अंजाम नहीं दे सकते, उसे एक नया ठिकाना देकर वहां से हट तो सकते हैं। जिस राह पर चलते हुए सिर्फ परेशानी, मायूसी या भावनाओं के कुचले जाने का अहसास हो, उस पर क्यों चलना भई ? इतना तो हमारे बस में हैं की अगले चौराहे पर मुड़ जाए और एक नई मंज़िल की तरफ़ रूख़ कर लें।
साह़िर लुध्यान्वी का लिखा गीत " मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया, हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया, ग़म और ख़ुशी में फ़र्क ना महसूस हो जहाँ, मैं दिल को उस मुक़ाम पे लाता चला गया " मेरे जीवन का सार है।
माँ हूँ इस लिए ये बातें तुम्हें बता रही हूँ। आइना सिर्फ़ अपने दिखा सकते है। ग़ैर को तुम्हारी अच्छाई या बुराई से या तुमसे कोई मतलब नहीं होगा। मैं चाहती हूँ की तुम भी ज़िन्दगी के इन बारीकियों को समझो और तब अपने फ़ैसले लो। न किसी के आने से जीवन की शुरुआत होती है और न ही किसी के जाने से ये सिलसिला ख़त्म होता है। चुकी ईश्वर ने हमें ये ताक़त दी है कि हम अपने दोस्त और बाकि के रिश्ते खुद बना सकते हैं तो इस नियमत का ग़लत इस्तेमाल मत करना। कभी किसी भी क़रीबी रिश्ते को हलकेपन से मत लेना। हर रिश्ता वक़्त चाहता है। हर रिश्ते में तुम्हें आगे वाले की ख़ुशी और उम्मीदों का ध्यान रखना होगा अगर तुम निभाना चाहती हो तो। जब कुछ दोगी, तभी बहुत कुछ मिलेगा। सिर्फ़ लेने का सोचोंगी तो सिवाय खालीपन के कुछ नहीं मिलेगा। हर रिश्ते में अगर यही ढूंढोंगी की इसमें मेरा क्या फायदा है, तब सच्चे और अच्छे रिश्ते कभी नहीं बनेंगे। ये उस धागे की तरह होता है जिसे दोनों तरफ़ से पकड़ना पड़ता है ताकि वो बना रहे। एक भी सीरा अगर छूट गया या ज़ोर से खीच गया तो उसका टूटना निश्चित है। जुड़ने पर भी गाँठ हमेशा रहेगी, बेटा।
दुनिया में सच्चे दोस्त बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। पहचानना और संभालना सीखो।
माँ
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