जोदि तोर डाक शुने केऊ न आसे तबे एकला चलो रे। एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे! जोदि केऊ कथा ना कोय, ओरे, ओरे, ओ अभागा, जोदि सबाई थाके मुख फिराय, सबाई करे भय- तबे परान खुले ओ, तुई मुख फूटे तोर मनेर कथा एकला बोलो रे! जोदि सबाई फिरे जाय, ओरे, ओरे, ओ अभागा, जोदि गहन पथे जाबार काले केऊ फिरे न जाय- तबे पथेर काँटा ओ, तुई रक्तमाला चरन तले एकला दलो रे! जोदि आलो ना घरे, ओरे, ओरे, ओ अभागा- जोदि झड़ बादले आधार राते दुयार देय धरे- तबे वज्रानले आपुन बुकेर पांजर जालियेनिये एकला जलो रे! - गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर यह एक ऐसी रचना है जिसका समय कभी भी खत्म नहीं होगा। जिस वक़्त यह लिखा गया उस समय भी इसका ...
Hindi works and my interpretations on their relevance.....