"तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतलाके, पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखलाके।" "मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का, धनुष छोड़कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का? पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर, 'जाति - जाति' का शोर मचाते केवल कायर, क्रूर।" - रामधारी सिंह दिनकर (प्रथम सर्ग, 'रश्मिरथी' ) जन्म और गोत्र आपको जीवन में वहीँ काम आ सकता है जहाँ का समाज कुंठित विचार धारा के अधीन है। जिस समाज में छमता को महत्व न देकर जाति या आर्थिक उपलब्धियों (चाहे वह किसी भी प्रकार से अर्ज़ी गयीं हो) को महान मानते हैं , वहां कभी भी ज्ञान को उसका उचित स्थान देना बहुत कठिन है। सदियों से इस मानसिकता ने ना सिर्फ हमारे देश और समाज को निम्न कोटि का बनाया है, बल्कि समुचित पीढ़ी को ग्रसित किया है। यह कोई आज की रीती नहीं है। महाभारत में भी कृपाचार्य और द्रोणाचार्य ने कर्ण को उसके ...
Hindi works and my interpretations on their relevance.....