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"तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतलाके, पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखलाके।" "मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का, धनुष छोड़कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का? पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर, 'जाति - जाति' का शोर मचाते केवल कायर, क्रूर।"                                              - रामधारी सिंह दिनकर (प्रथम सर्ग, 'रश्मिरथी' ) जन्म और गोत्र आपको जीवन में वहीँ काम आ सकता है जहाँ का समाज कुंठित विचार धारा के अधीन है। जिस समाज में छमता को महत्व न देकर जाति या आर्थिक उपलब्धियों (चाहे वह किसी भी प्रकार से अर्ज़ी गयीं  हो) को महान मानते हैं , वहां कभी भी ज्ञान को उसका उचित स्थान देना बहुत कठिन है। सदियों से इस मानसिकता ने ना सिर्फ हमारे देश और समाज को निम्न कोटि का बनाया है, बल्कि समुचित पीढ़ी को ग्रसित किया है। यह कोई आज की रीती नहीं है। महाभारत में भी कृपाचार्य और द्रोणाचार्य ने कर्ण को उसके ...
"वृक्ष हों भले खड़े , हों बड़े, हों घने , एक पत्र छाह की , मांग मत, मांग मत, मांग मत, अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ। तू न थकेगा कभी, तू न थमेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ, अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ। ये महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है, अश्रु, स्वेद, रक्त से, लथपथ, लथपथ, लथपथ, अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।"                                           - श्री हरिवंश राय बच्चन  इस कविता से मेरा परिचय कई वर्षों पहले हुआ था और तबसे इसके शब्दों की गूँज हमेशा से मेरे साथ रही है। ये मुझे कभी किसी कवि की रचना नहीं लगी। हमेशा से लगा जैसे अंतरआत्मा का आदेश है की इसकी अवहेलना किसी भी मन:स्तिथि एवं परिस्तिथि में नहीं होनी चाहिए। जब भी इससे पढ़ती हूँ तो लगता है जैसे मन ये सारी बातें मुझसे कह रहा है। बहुत सरलता से समझा रहा है की ये जीवनयापन का सबसे सशक्त मार्ग है। मन से अधिक...