सुक़ून के एक पल की हर किसी को तलाश है। पर न जाने ये क्यों मिलता नहीं। हर किसी को शांति की खोज है। अंदर बाहर कहीं तो इस से मुलाक़ात हो जाऐ। बैठ कर सुख-दुःख की दो चार बातें कर लें उसके साथ। बस वो एक पल एक बार हाथ लग जाए, फिर कहीं जाने नहीं दूँगी। इस चैन की खोज में अपने दिन रात के चैन को खो दिया है कहीं मैंने। हँसी भी आती है अपने इस सोच पर। फ़िर ध्यान आता है शायद इसी को जीवन कहते हैं।जब हम बोलते हैं पर न कोई सुनने वाला हो या समझने वाला हो तो ऐसा वक़्त भी आता है जब इंसान चुप हो जाता है। दिल बोलना तो बहुत चाहता हैं पर फिर भी जुबां चुप रहती है की कहीं कोई तूफ़ान नहीं उठ जाये। कुछ कहने की चाह नहीं रह जाती।अक्सर जिस उम्मीद या चीज़ के पीछे दौड़ के थक जाने पर बैठ जाती हूँ, नज़र उठा कर देखती हूँ तो वही चीज़ ख़ुद -ब-ख़ुद आराम से चल कर मेरी तरफ आती दिखाई देती है। उसकी चाल में कोई बेचैनी या जल्दी पहुँचने की परेशानी नहीं दिखाई देती। फिर मैं क्यों परेशान हो जाती हूँ इसके लिए? किसी ने सच ही कहा है की अपने जीवन को सफ़ल समझने के लिए म...
Hindi works and my interpretations on their relevance.....